वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी-सर्वे की प्रक्रिया के दौरान मस्जिद के वजूखाने में कथित तौर पर मिले शिवलिंग के बाद से इस परिसर की ऐतिहासिक कहानी पर कई सवाल खड़े हुए हैं. इसके अलावा इस बात पर भी चर्चा तेज है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी में विश्वेश्वर समेत अन्य मंदिरों को तोड़ने का फरमान जारी किया था या बचाने का? इसी बात को लेकर इतिहास में कई कहानियां दर्ज हैं, आइए उनमें से कुछ पर नजर डालते हैं.
मआसिर-ए-आलमगिरी में क्या लिखा है?
मआसिर-ए-आलमगिरी किताब में औरंगजेब की ओर से विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के फरमान का उल्लेख है. इसे मुस्ताईद खान ने लिखा था. यह किताब 1710 में पूरी हो गई थी. इस किताब में औरंगजेब के शासन के 1658 से 1707 की घटनाओं का जिक्र है. किताब फारसी में है और इसका इंग्लिश अनुवाद सर जादुनाथ सरकार ने किया था. किताब एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता में उपलब्ध है.
किताब के मुताबिक, 8 अप्रैल 1669 को बनारस में सभी पाठशालाओं और मंदिरों को तोड़ने का आदेश औरंगजेब ने जारी किया था. काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी भी इस किताब में दी गई है. किताब के अनुसार, 2 सितंबर को औरंगजेब को काशी विश्वनाथ मंदिर टूट जाने की जानकारी मिली थी. यानी बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर को 8 अप्रैल 1669 से 2 सितंबर 1669 के बीच तोड़ा गया.
BHU के इतिहास विभाग के प्रोफेसरों की है अलग-अलग राय
औरंगजेब एक क्रूर और मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने वाला शासक था, इसपर खुद इतिहासकारों की अलग-अलग धारणा है. BHU के इतिहास विभाग के प्रोफेसर महेश अहिरवार ने औरंगजेब के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों के निर्माण कराने को मिथ्या धारणा बताया और कहा कि पुराने दस्तावेजों से पता चलता है कि औरंगजेब सभी धर्मों का सम्मान करने वाला बादशाह था. वहीं, BHU के ही इतिहास विभाग के प्रोफेसर विनोद जायसवाल का मानना है कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ के मंदिर सहित हजारों मंदिर को तुड़वाया था.
प्रोफेसर महेश अहिरवार ने कहा,
"औरंगजेब बहुत ही संजीदा शासक था और हिंदू धर्म और मंदिरों के प्रति उसके मन में आदर था. BHU के भारत कला भवन में औरंगजेब का रखा फरमान काशी विश्वनाथ मंदिर को न तोड़े जाने का पुख्ता सबूत है. इसके अलावा उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के भी रख-रखाव के लिए आसपास के गांव से टैक्स न वसूलने का फरमान जारी किया था और महाकालेश्वर के रख-रखाव के लिए अपने शाही खजाने से भारी भरकम रकम भी दे रखी थी. औरंगजेब एक धार्मिक सहिष्णुता वाला राजा था और सभी धर्मों का सम्मान करता था."
महेश अहिरवार
वहीं, इस मामले पर प्रोफेसर विनोद जायसवाल के अलग दावे हैं. उन्होंने कहा, "काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा गया और फिर बनाया गया. क्रमिक इतिहास के रूप में देखें तो सबसे पहले 1194 ई. में गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन अबैक ने भारत के गद्दार कहे जाने वाले जयचंद को पराजित करने के बाद धन संपदा को लूटा. फिर यह सिलसिला चलता रहा और अलग-अलग मुगल राजा इसे तोड़ते और लूटते गए. सबसे अंत में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ के मंदिर सहित हजारों मंदिर को तुड़वाया. मस्जिद को तोड़ने के अनेकों प्रकार मिलते हैं. फिर कई अलग-अलग स्टेट के हिंदू राजाओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर को बनवाया भी."
उन्होंने आगे कहा, "वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर का जो स्वरूप दिखता है, उसे अहिल्याबाई होलकर ने बनवाया. नेपाल नरेश ने वहां नंदी की प्रतिमा स्थापित कराई और फिर 1835 ई. में एक टन सोना महाराजा रणजीत सिंह ने दान दिया जो शिखर पर आज भी दिखाई पड़ता है. मंदिर तोड़कर ही वहां मस्जिद बनाई गई है. अनेकों प्रमाण हैं, जो दिखाई पड़ते हैं कि वहां मंदिर ही था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनवाया गया."
क्या कहती है पट्टाभि सीतारमैय्या किताब Feathers And Stones?
पट्टाभि सीतारमैय्या ने अपनी किताब Feathers And Stones में अपने एक मौलाना की पांडुलिपि का जिक्र करते हुए बड़ा दावा किया था. उन्होंने किताब में लिखा था,
"एक बार औरंगजेब बनारस के पास से गुजर रहा था. सभी हिंदू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और भोलेनाथ के दर्शन के लिए काशी आए. मंदिर में दर्शन कर जब लोगों का समूह लौटा तो पता चला कि कच्छ की रानी गायब हैं. सघन तलाशी की गई तो वहां एक तहखाने का पता चला. वहां बिना आभूषण के रानी दिखाई दीं. पता चला कि यहां महंत अमीर और आभूषण पहने श्रद्धालुओं को मंदिर दिखाने के नाम तहखाने में लेकर आते और उनसे आभूषण लूट लेते थे."
Feathers And Stones
किताब में आगे लिखा गया है, "औरंगजेब को जब पुजारियों की यह करतूत पता चली, तो वह बहुत गुस्सा हुआ. उसने घोषणा की कि जहां इस प्रकार की डकैती हो, वह ईश्वर का घर नहीं हो सकता और मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. मगर जिस रानी को बचाया गया उन्होंने मलबे पर मस्जिद बनाने की बात कही और उन्हें खुश करने के लिए एक मस्जिद बना दी गई. इस तरह काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में मस्जिद अस्तित्व में आया."
मौलाना ने इसके बारे में सीतारमैय्या के किसी दोस्त को बताया था और कहा था कि जरूरत पड़ने पर पांडुलिपि दिखा देंगे. बाद में मौलाना मर गए और सीतारमैय्या का भी निधन हो गया, लेकिन वह कभी अपने उस दोस्त और लखनऊ के मौलाना का नाम नहीं बता पाए.
Courtesy: यूपी तक
अपने शहर, राज्य एवं देश के विश्वस्त, तथ्यपूर्ण समाचार और घटनाएं जानें, जुड़िए #दैनिक_सीमा_रेखा #Seemarekhadaily Whatsapp group से।
क्लिक करें नीचे दिए लिंक पर :
देवरिया जनपद से प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र
#देवरिया #Deoria #NewsToday #NewsAlert #newspapers #updates #NewsUpdates #hindinews #Deorianews